पूरा नाम --- कृष्णा सोबती
जन्म -----------18 फ़रवरी, 1925
जन्म भूमि --------गुजरात (अब पाकिस्तान में)
कर्म-क्षेत्र----------अध्यापक, उपन्यासकार, कहानीकार,
मुख्य रचनाएँ
उपन्यास-
डार से बिछुरी, मित्रो मरजानी, सूरजमुखी अंधेरे के, ज़िन्दगीनामा, यारों
के यार, तिनपहाड़, दिलो-दानिश। कहानी-बादलों के घेरे, मेरी माँ कहाँ,
सिक़्क़ा बदल गया आदि
भाषा -------हिन्दी
विद्यालय -------दिल्ली विश्वविद्यालय
पुरस्कार-उपाधि
साहित्य
अकादमी पुरस्कार, साहित्य शिरोमणि सम्मान, शलाका सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त
पुरस्कार, साहित्य कला परिषद पुरस्कार, कथा चूड़ामणि पुरस्कार, महत्तर
सदस्य
नागरिकता -------भारतीय
कृष्णा
सोबती ( जन्म: 18 फ़रवरी, 1925 गुजरात) अपनी
साफ-सुधरी रचनात्मकता और अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं। इन्होंने हिन्दी
की कथा-भाषा को अपनी विलक्षण प्रतिभा से अप्रतिम ताज़गी़ और स्फूर्ति
प्रदान की है। कृष्णा सोबती ने पचास के दशक से ही अपना लेखन कार्य प्रारम्भ
कर दिया था। इनकी पहली कहानी 'लामा' थी, जो 1950 ई. में प्रकाशित हुई थी।
कार्यक्षेत्र
‘बादलों
के घेरे’, ‘डार से बिछुड़ी’, ‘तीन पहाड़’ एवं ‘मित्रो मरजानी’ कहानी
संग्रहों में कृष्णा सोबती ने नारी को अश्लीलता की कुंठित राष्ट्र को
अभिभूत कर सकने में सक्षम अपसंस्कृति के बल-संबल के साथ ऐसा उभारा है कि
साधारण पाठक हतप्रभ तक हो सकता है। ‘सिक्का बदल गया’, ‘बदली बरस गई’ जैसी
कहानियाँ भी तेज़ी-तुर्शी में पीछे नहीं। उनकी हिम्मत की दाद देने वालों
में अंग्रेज़ी की अश्लीलता के स्पर्श से उत्तेजित सामान्यजन पत्रकारिता एवं
मांसलता से प्रतप्त त्वरित लेखन के आचार्य खुशवंत सिंह तक ने सराहा है।
पंजाबी कथाकार मूलस्थानों की परिस्थितियों के कारण संस्कारत:
मुस्लिम-अभिभूत रहे हैं। दूसरे, हिन्दू-निन्दा नेहरू से अर्जुन सिंह तक
बड़े-छोटे नेताओं को प्रभावित करने का लाभप्रद-फलप्रद उपादान भी रही है।
नामवर सिंह ने, कृष्णा सोबती के उपन्यास ‘डार से बिछुड़ी’ और ‘मित्रो
मरजानी’ का उल्लेख मात्र किया है और सोबती को उन उपन्यासकारों की पंक्ति
में गिनाया है, जिनकी रचनाओं में कहीं वैयक्तिक तो कहीं पारिवारिक-सामाजिक
विषमताओं का प्रखर विरोध मिलता है। इन सभी के बावजूद ऐसे समीक्षकों की भी
कमी नहीं है, जिन्होंने ‘ज़िन्दगीनामा’ की पर्याप्त प्रशंसा की है। डॉ.
देवराज उपाध्याय के अनुसार-‘यदि किसी को पंजाब प्रदेश की संस्कृति,
रहन-सहन, चाल-ढाल, रीति-रिवाज की जानकारी प्राप्त करनी हो, इतिहास की बात’
जाननी हो, वहाँ की दन्त कथाओं, प्रचलित लोकोक्तियों तथा 18वीं, 19वीं
शताब्दी की प्रवृत्तियों से अवगत होने की इच्छा हो, तो ‘ज़िन्दगीनामा’ से
अन्यत्र जाने की ज़रूरत नहीं।
प्रमुख कृतियाँ
कृष्णा
सोबती उपन्यासकार के अतिरिक्त एक कहानी लेखिका के रूप में भी प्रसिद्ध रही
हैं। आठवें दशक के पूर्व से ही इनकी धूम रही है। इनके कुछ कहानी और
उपन्यासों का संग्रह इस प्रकार से हैं-
उपन्यास और कहानी
'डार से बिछुड़ी'
'यारों के यार'
'तीन पहाड़'
'मित्रो मरजानी'
'सूरजमुखी अंधेरे के'
'ज़िन्दगीनामा'
'दिलो-दानिश'
'समय सरगम'
'बादलों के घेरे'
'मेरी माँ कहाँ'
'दादी अम्मा'
'सिक़्क़ा बदल गया'
विवाद
इनकी
कहानियों को लेकर काफ़ी विवाद हुआ। विवाद का कारण इनकी मांसलता है। स्त्री
होकर ऐसा साहसी लेखन करना सभी लेखिकाओं के लिए सम्भव नहीं है। डॉ.
रामप्रसाद मिश्र ने कृष्णा सोबती की चर्चा करते हुए दो टूक शब्दों में लिखा
है: उनके ‘ज़िन्दगीनामा’ जैसे उपन्यास और ‘मित्रो मरजानी’ जैसे कहानी
संग्रहों में मांसलता को भारी उभार दिया गया है। केशव प्रसाद मिश्र जैसे
आधे-अधूरे सैक्सी कहानीकार भी कोसों पीछे छूट गए। बात यह है कि साधारण शरीर
की ‘अकेली’ कृष्णा सोबती हों या नाम निहाल दुकेली मन्नू भंडारी या प्राय:
वैसे ही कमलेश्वर अपने से अपने कृतित्व को बचा नहीं पाए। कृष्णा सोबती की
जीवनगत यौनकुंठा उनके पात्रों पर छाई रहती है।
पुरस्कार व सम्मान
कृष्णा सोबती को निम्नलिखित पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हो चुके हैं-
1999 - 'कथा चूड़ामणि पुरस्कार'
1981 - 'साहित्य शिरोमणि पुरस्कार'
1982 - 'हिन्दी अकादमी अवार्ड'
2000-2001 - 'शलाका सम्मान'
1980 - 'साहित्य अकादमी पुरस्कार'
1996 - 'साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप'
इसके अतिरिक्त इन्हें 'मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार' भी प्राप्त हो चुका हैं।
ज्ञान पीठ पुरष्कार
ज्ञान पीठ पुरष्कार
ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई के मुताबिक , साल 2017 के लिए दिया जाने वाला 53वा ज्ञानपीठ पुरष्कार हिंदी साहित्य की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती को साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया जायेगा
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