वियोगी होगा पहला
कवि, आह से उपजा होगा गान। निकलकर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता
अनजान..।' इन पंक्तियों की रचना करने वाले, हिंदी साहित्य में छायावाद के
चार स्तंभों में से एक कवि सुमित्रानंदन पंत का मानना था कि कविता विचारों
या तथ्यों से नहीं बल्कि अनुभूति से होती है।
पंत
की लेखनी के बारे में प्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र यादव ने कहा 'पंत जी
ने सामान्य रूप से प्रकृति के बारे में बात की है और उन्होंने जो कुछ भी
महसूस किया, उसे ही शब्दों के रूप में लिखा।' दिल्ली विश्वविद्यालय के
प्रोफेसर हरिमोहन शर्मा ने कहा कि पंत अपनी कविता में वैचारिकता के मुकाबले
जीवन की अनुभूति को प्राथमिकता देते हैं।
पंत
अत्यंत सुकोमल भावनाओं के संवेदनशील कवि थे। पंत को ‘सुकुमार कवि’ कहे
जाने के बारे में कहा जाता है कि उनका रास मुधर था। वह खुद भी बहुत मधुर और
धीमी आवाज में बात करते थे।
महानायक
अमिताभ बच्चन ने हाल ही में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम में कहा था कि
उनका नाम पंत जी ने ही रखा है। इसके बारे में यादव ने कहा कि पंत प्रसिद्ध
कवि और अमिताभ के पिता हरिवंश राय बच्चन के गहरे दोस्त थे।
रचनाओं
को देखें तो पंत कई मामलों में अन्य प्रमुख छायावादी कवियों से अलग दिखते
हैं। रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी रचनाओं में समाज और देश के बारे में भी
काफी कुछ लिखा है, जबकि पंत अपने काव्य में मुख्यत: प्राकृतिक सौदर्य की
बाते करते हैं। पंत ने प्रकृति के सुकोमल पक्ष को प्राथमिकता में रखा है।
हालाँकि बाद में उनके तेवर में कुछ बदलाव आता है। पंत सूक्ष्म भावों की
अभव्यक्ति और सचल दृश्यों के चित्रण में अत्यंत दक्षता रखते थे और उनकी
भाषा अत्यंत सशक्त और समृद्ध थी।
उत्तराखंड
के कुमाऊँ क्षेत्र में पैदा हुए पंत के विचारों में क्रमश: परिवर्तन दिखता
है। प्रारंभ में पंत सर्वात्मवाद दर्शन में आस्था रखते है। लेकिन आगे वह
मार्क्सवाद से प्रभावित होते है और आखिर में वह मानवतावाद में विश्वास
करने लगते हैं।
पंत विचार
से नहीं बल्कि संवेदना संचालित कवि थे। इसलिए उनके दर्शन में परिवर्तन देखा
जाता है। उस समय देश में घट रही घटनाओं से पंत के जीवनधार में बदलाव आता
है, जो कि उनके विचारों में प्रतिबिंबित होता है।
1968में
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पंत ने चिदंबरा, उच्छवास, वीणा, पल्लव,
गुंजन, लोकायतन समेत अनेक काव्य कृतियों की रचना की है।
No comments:
Post a Comment